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दिल के जज़्बात

तिरी याद भी जानिब मेरी आदत से जुदा नही होती।
तुमसे नही मिलते फ़िर बेशक मुहब्बत हुई नही होती।

करिश्मा ये अज़ीब अज़ीज़ के नज़र का घायल हुआ।
ज़िंदा तो बेशक थे ये ज़िन्दगी खूबसुरत हुई नही होती।

हर किसी से मिलती नही अदा तिरी नज़ाकत से भरी।
हम होश ना खोते गर वो मेरी गली से गुजरी नही होती।
 
रूप रंग पे नही दिल तो उनकी सादगी का कायल हुआ।
वो समझता है दर्द मजलूमों के जिनकी जुबाँ नही होती।

रब समझता है हर दुआ जो हर्फ़ -ए -नमाज़ नही होती।
भूल कर तुझको यार अब हमसे इबादत भी नही होती।

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6 Comments

Ravi Goyal

23-Jun-2021 10:53 AM

बहुत खूबसूरत रचना 👌👌

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Pragati shrivastava

23-Jun-2021 01:01 PM

Thank.u so much for your valuable appreciation ❤❤🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫💕🍫

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Natash

23-Jun-2021 10:44 AM

👍👍👍

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Pragati shrivastava

23-Jun-2021 01:01 PM

Thank.u so much

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Aliya khan

23-Jun-2021 09:29 AM

Nice

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Pragati shrivastava

23-Jun-2021 10:09 AM

Thank.u so much for your valuable appreciation 👏👏👏🖤🖤🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🖤🖤♥️♥️🍫🍫🍫🍫🍫🍫

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